तीस नंबर बीडी पीकर ऐसे खांस रहा है।
जैसे कोई अनपढ़ बच्चा पुस्तक बांच रहा है ।।
विमल गुटखा खाकर दीवारों पर थूके।
जैसे कुत्ता है और दीवारों पर भुके।।
जर्दा खाते खाते रहते तुम पान मसाला।
खाने में आनंद पर शरीर खोखला कर डाला।।
संगत भी तुम ऐसे लोगों की करते हो।
दिन-रात केवल तंबाकू पर मरते हो।।
गलियों से गुजरे जो शर्मसार कर चला गया।
तुम नशे में चूर रहे वह ऊंची टांग कर चला गया।।
बाल बच्चों से दूर अब चौराहों पर घूमता है।
दारू बीड़ी की लत से अद्दे खाली बोतल चुमता है।।
नशे की लत से जली रोटी पे पत्नी पर बरस जाता है।
अब देखो 4 दिन के टुकड़े खाने को तरस जाता है।।
सुख शांति समृद्धि घर सब तूने उजाड़ दिया।
एक गाली दी तूने मानो मां का आंचल फाड़ दिया।।
कवि तेजस्वी की राय व्यसन से तुम वैर करो।
सुख शांति में रहकर अपने घर की खैर करो।।
अरे सच में नशे नाम का काम ही तमाम हो जाए।
जब छोड़ दो नशा उस दिन घर स्वर्ग धाम हो जाए।।
कवि कृष्णा सेन्दल तेजस्वी
राजगढ़ धार मप्र
मों:- ८४३५४४०२२३
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