संघर्ष करो

 बदला मंच चित्रात्मक का सर्जन
रचना प्रस्तुत
चित्र क्रमांक-2
शीर्षक- संघर्ष करो
नाम --भास्कर सिंह माणिक
विषय -कविता

      संघर्ष करो
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उठो संघर्ष करो
बता दो
हम आप से नहीं
हमसे आप है

जिसे कहते हैं
संतोष
वह है दरिद्रता
इसे कहते भाग्य
वह है पराजित भावना
इसे कहते शांति
वह है असमर्थता
या निष्क्रियता
जो तुम्हे कहते
दीन, नंगे भूखें

उठो
छींन लो उनसे अपने अधिकार
दिखा दो अपनी शक्ति
तभी खुश होगा
आम आदमी
किसान ,मजदूर
अपने अधिकार हेतु
हुंकार भरो
उठो संघर्ष करो

कब हो गई शाम?
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कल भी था
है आज भी
उत्तर की आस में
ना पूरी हो सकी भावना
मेहनतकश मजदूर की
है आज भी
हाथों में छाले
पैरों में बिवाई
फटे होंठ
चेहरे पर झुर्रियां
घुसी हुई आंखें
पिचके गाल
चीथड़ो से लिपटा तन
रोटी एक वक्त की
जुटाते - जुटाते
कब हो गई शाम
चढ़ाता आज भी मुंह
वही प्रश्न
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है। यह अन्यत्र विचाराधीन नहीं है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक) कोंच, जनपद- जालौन, उत्तर- प्रदेश-285205

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