कर्तव्य सर्वत्र देखता हूँ

कर्तव्य सर्वत्र देखता हूँ ====/=======

दृश्य जो छिपा सीने में ,
भव्य चित्र देखता हूँ ।
जब भी देखता हूँ ,
ह्रदय विचित्र देखता हूँ ।।
लालसा वे वजह जानू ,
गर्त यत्र तत्र देखता हूँ ।
रिश्तों की भांति थोपा नहीं,
अचानक मित्र देखता हूँ ।।
शुभता लुभाए उम्मीद की ,
खुशबू भरा इत्र देखता हूँ ।
गिराकर बढ़ने की सोचूं ,
स्वत: भूल सचित्र देखता हूँ ।।
बिखराव गुटबाजी करवा दूँ ,
मनोवृत्ति भ्रत्ति चित्र देखता हूँ ।
अवसाद निराशा की गिरफ़्त में ,
द्वेषता का चरित्र देखता हूँ । 
खींचती है डोर कोई ,
बंधन पवित्र देखता हूँ ।
सोचता हूँ साथ हे मेरे ,
कर्तव्य सर्वत्र देखता हूँ ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज "
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )


Badlavmanch

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