आदर्श-विवेका


आदर्श-विवेका
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कुछ अज्ञानी घृणा करेंगे ,
मुनि ज्ञानी कब कहाँ ?हँसेंगे ।
नहीं देखना आँख उठाकर ,
वरना अंधे राह तकेन्गे ।।
अज्ञान गर्त पतितॉ से है नर ,
बात नहीं करनी है सत्वर ।
माया-तिमिर आवरण टूटे ,
जन हित साधन जब हों तत्पर ।।
मोह नदी में जो मन तैरा ,
सुख अन्वेषण डूब मरेंगे ।
दुख की पीड़ा से जो निर्भय ,
स्थल -द्वंद ,स्वच्छंद रहेंगे ।।
डॉ अनुज कुमार चौहान (अनुज)
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश )

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