ऐ दुष्टों! मुझे इतना तो बता दो
आखिर,क्या है मेरा कसूर?
यही न कि मैं एक नारी हूँ...
क्या मैं एक नारी हूँ?
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तुझको जनने वाली हूँ मैं
सींचा नहीं खून से ही सिर्फ
छाती का दूध भी पिलाया है
आज इसी ज़िस्म का तूने
क्यों बलात्कार किया?
देह ही नहीं हुआ मेरा घायल
रूह भी चित्कार उठा
आखिर,तुम इतना बता दो
है क्या मेरा कसूर?
यही न कि मैं एक नारी हूँ...
क्या मैं एक नारी हूँ?
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गर जीवन दे सकती हूँ तो
मिटा सकती हूँ हस्ती भी तेरी
कलियुग के तुम राम बनो तो
हो सकता है कि मैं सीता ना बन पाऊँ
लेकिन रावण बनते हो तो
मैं रणचंडी भी बन जाऊँ
ऐ दुष्टों! इतना बता दो
है क्या तेरा यही दस्तूर?
आखिर,क्या है मेरा कसूर?
यही न कि मैं एक नारी हूँ...
क्या मैं एक नारी हूँ?
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भोली -सी मैं दिखने वाली
गर ममता की मूरत हूँ
तो ये तुम भूल ना जाना
आग की भी मैं एक सूरत हूँ
मेरे आँसुओं को अबतक
तुमने समझा ये पानी है
अगर ये पानी हो सकता तो
अपने अश्रु को अब दहकती ज्वाला बनाना है
जो बुझने से भी नहीं बुझेगी
किसी भी सावन - भादो से
ऐ दानव! इतना तो बता दो
है क्या तेरा यही फितूर?
आखिर,क्या है मेरा कसूर?
यही न कि मैं एक नारी हूँ...
क्या मैं एक नारी हूँ?
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ये ज़िस्म है मेरा,किसी मंदिर का प्रसाद नहीं
चाहो तो मिलकर बाँटो इसे
या कचरे में फेंक दो
मैं भी कितनी नादां...थी अबतक
अपने ही बर्बादी पर कितने ही दीपक जलाए मैंने
नहीं जलेंगे अब कोई कैंडल
इसकी ही अग्नि से अब तुम्हें जलाना है
नहीं लडाई है ये कोई
किसी सरहद और मजहब की
लडाई है तो सिर्फ ये मेरी
नारी के अस्मत की...
नारी के स्वाभिमान की
ऐ दुष्टों! अब तो बता दो
तेरे रहेंगे क्या यही फितूर?
आखिर,क्या है मेरा कसूर?
यही न कि मैं एक नारी हूँ...
क्या मैं एक नारी हूँ?
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**एकता कुमारी**
Badlavmanch
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