सद् बुध्दि और सद् ज्ञान के
******** दोहे ***********
===== भाग -4 =======
सत्य धर्म शुभ कर्मरत ,विष भी पी मुसकाय।
वही पूज्य शरणागत ,शुचि परहित में जाय।।
सत्य भलाई से बढा़ ,तप नही कोई जान ।
परमारथ निस्वार्थ हो ,मानव वही महान।।
सादा जीवन सरल चित ,मिले सदा संतोष।
हर-हर में हरि वास है,कर न किसी पर रोष।।
कल क्या हो किसे पता ,समय ना कर बर्बाद।
होगा पल ही में प्रलय ,भगवन को कर याद।।
रतन नही गुरु ज्ञान सा,जग में कोई आन।
प्रेमी मन सा मन नहीं ,प्रियतम श्री भगवान ।।
शुभ सदगुण सदभाव से,जन मानस हर्षाय।
दीन दुखि की सेवाकर ,पल पल हरिगुण गाय।।
सपन अनूठा रात का ,आँख खुले झुठ होय ।
प्रकृति आत्मा श्रीहरि ,बुझही बिरला कोय।।
सुख बांटे सुख होत है,सुख चाहत सब कोय ।
पर को दुखी न कर कभी,अपना दुखडा़ रोय।।
मनसा वाचा कर्मणा ,कर सदगुण में वास ।
फल आशातज करम कर,मन ना करो निराश।।
जहाँ तलक काबू पहुँच,देना जग को सीख ।
लेना छोडो़ सुख मिले ,निन्म निदान है भीख।।
वसुधा पर कोई नहीं ,है सर्वथा निर्दोष ।
पर प्यारे न देख कभी ,व्यर्थ में ही परदोष।।
ईश वाणी कल्याण मयी ,है वेदों का ज्ञान ।
जनहितार्थ ऋषियों निमित्तदिये स्वयं भगवान।।
निज -पर का अन्तर हटा ,कर सबही से प्यार।
हर को हरिमय देख के ,हो भव सागर पार ।।
धन वैभव पद मान बल का न जिसेअभिमान।
जन मन में खुशियां भरे ,मानव वही महान।।
निज निन्दा स्तुति आदि का,जिसे नही है भान।
उत्तम से उत्तम है वही ,वसुधा पर इन्सान ।।
प्रेम श्रध्दा विश्वास ही ,है जीवन आलोक ।
शुभ सदगुण सुकर्म सदा काटत है भवशोक।।
रसना स्वाद विवाद से ,मानव सदा बचाय ।
मृदुवाणी मुस्कानमय ,रहो सदैव हर्षाय ।।
संत मिलन सुकर्म सदा ,सत्संगत शुभ पाय।
पल में"बाबूराम कवि"जन्म मरण कटि जाय।।
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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)841508
मो,0नं0- 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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