दिनांक : 26/08/2020
विषय : कब ऐसा चाहा मैंने
(स्वरचित कविता )
कब ऐसा चाहा मैंने कि
तुम मेरी ख्वाहिशों को पंख दो..
मेरी पलकों के नज़्म को
गुनगुनाने की कोशिश करो..
ना किया कोई उम्मीद तुमसे
ना कभी कोई शिकवे किये..
फ़िर भला बताओ, कब चाहा मैंने कि..
मैं तुम्हारी ज़िद बन जाऊँ....
कब ऐसा चाहा मैंने...
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"शालिनी कुमारी "
शिक्षिका (प्रारंभिक विद्यालय )
मुज़फ़्फ़रपुर (bihar)
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