'बदलाव मंच' अंतरराष्ट्रीय सचिव डॉ.सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया जी द्वारा 'महफिल' विषय पर सुंदर रचना

महफिल होती है जवाँँ,
यार तेरे इक आने से,
शाकी को भी शिकायत है तुझसे,
बस तेरे इक मुस्कुराने से,

गजब का जादू है,
गले तेरे लग जाने मे,
ऐसा कोई नशा नहीं जमाने मे,
जो महक है तेरे याराने मे,
फिका है हर जाम कोई,
जाकर देखा हर मयखाने मे,

चर्चे हैं हर तरफ नाम के तेरे,
कारवां गुजर गया आजमाने मे,
मुकर्रर था तेरा मिलन,
इस नाचीज़ को अपना बनाने मे,
इल्म है इतना की.
कायम रहे ये ताजगी सदा,
नशा न उतरे ता उम्र कभी,
यारों के आशियाने मे,
यूं तो गिले भी हैं, शिकवे भी,
पर वो तासीर नहीं पैमाने मे,

बस इतना इल्म रहे,
बरकरार रहे ऐ यार तेरी यारी,
सत्यम की दुआ है या रब,
आवे न किसी गैरत के बहकावे मे।

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