मंच को नमन
अच्छाई
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अपने जीवन में अच्छाई से प्यार करें
आओ हम सब अच्छाई का प्रचार करें
नफरत के बीज पनपने हमें नहीं देना
द्वेष की खाई खोदने हमें नहीं देना
गाएं सब मिलकर मस्ती में गीत मल्हार
भेदभाव दिल में पलने हमें नहीं देना
हम सब मन से एक दूजे का सत्कार करें
आओ हम सब अच्छाई का प्रचार करें
जाति मजहब की हम मिल दीवारें तोड़े
जो रूठे हैं हमसे उनसे रिश्ते जोड़े
रहे कहीं न तम हम प्रीत के दीप जलाएं
लें शपथ हम सब भाव भेदभाव के छोड़े
अब तो हम बुरे विचार का तृष्कार करें
आओ हम सब अच्छाई का प्रचार करें
मंदिर मस्जिद कब लड़े आज तक बतलाओ
प्रकृति ने क्या छींना है तुमसे बतलाओ
निस्वार्थ भाव से जल थल नभ सेवा करता
तुम क्यों करते व्यर्थ में दोहन बतलाओ
हम मानव है मानवता का व्यवहार करें
आओ हम सब अच्छाई का प्रचार करें
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक)कोंच
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