कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा 'मृत्यु' विषय पर रचना

           👨‍👧  मृत्यु👨‍👧
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मनुज जन्म प्रारब्ध धरा पर,
मृत्यु तो अवसान ही है।
रंग-बिरंगी दुनियाँ के मेले में 
जीवन का अंतिम ठहराव ही है।
जन्म एक करिश्मा कुदरत का,
कोई आता यहाँ अनर्थ नही।
शाश्वत सत्य जन्म-मरण का,
परोपकार बिना सब व्यर्थ कहीं।
निज स्वार्थ लोलुप-मानव का,
पशुता में कोई फर्क नही।
आना निश्चित है मृत्यु का,
जहाँ इस दुनियाँ से संपर्क नही।
बचपन, जवानी और बुढापा,
क्षणभंगुर जीवन का दस्तूर यही।
नभ पर सुबह चमकता सूरज,
फिर शाम भी  है होना निश्चित।
एक सफर जिन्दगी का जीवन,
सफर का पड़ाव अनिश्चित है।
तन का मरना निश्चित एक दिन,
कोई निश्चित मृत्यु का समय नही।
जीवन -मृत्यु  खेल जगत का,
ईश्वर -रचित  मोहमाया अद्भुत है,।
रिश्तों का ताना-बाना का उलझा सा,
सुलझाते निकल जाता समय कही
इस नाट्य रंगमंच पर दुनियाँ का,
अपना अलग किरदार निभाना है।
अपने किरदार में रच-बस कर,
जीवन में रिश्तों का खेल रचाना यहाँ।
कर खेल समापन पर्दे के पीछे जाना है।
और जीवन का मतलब इतना ही यहाँ,
पाप-पुण्य और कर्मो का प्राश्चित है
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स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकर सुरक्षित
रचनाकारा-शशिलता पाण्डेय

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