कवि गौरव मिश्र तन्हा द्वारा काव्य रचना

बन कर के मुक्तक तुम आना,
गजलों में तुमको लिखूंगा
बन अलंकार तुम आजाना,
इक नया भाव तुमको दूंगा
चौपाई बन कर यदि आओ ,
दोहा के संग फिर लिखूंगा
यदि आना शान्त स्वरों सी तुम,
तुमको  चुप गीतों में लिखूंगा
तुम बन अल्फ़ाज़ चली आना ,
शेरों में तुमको लिखूंगा
आना लय कारी शब्दों सी 
तुमको मिसरे में लिखूंगा
बन कर आना यदि हंसी ठिठोली 
तो तुमको व्यंगों में भी लिखूंगा
आओ यदि बनकर यादों सी 
फिर संस्मरण में लिखूंगा
आईं तुम एक कथानक सी
फिर उपन्यास में लिखूंगा
तुम बनकर वर्ण चली आना
तुमको शब्दों में लिखूंगा
यदि शब्द रूप लेकर आईं
तुमको पंक्ति में लिखूंगा
यदि पंक्ति बनकर तुम आना
तुमको कविता में लिखूंगा
बनकर यदि तुम कविता आईं
तुमको पुस्तक में लिखूंगा

"गौरव तन्हा" 

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