प्रगति करो

🌾प्रगति करो 🌾
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सदभाव ,सदगुण ,स्नेह ,श्रध्दा ,प्रेम , सत्य निज में भरो ।
   प्रगति  करो   ।।

राष्टृ जतन और प्रभु भजन बिन सोचो कोटि जतन क्या होगा?
शुध्दभाव ,सत्य-धर्म से रिता भक्ति भाव भजन क्या होगा ?
शुभ-कर्म और मर्म हीन नरतन अनमोल रतन क्या होगा?
देश सुरक्षा निज रक्षा बिन मानव सोच भरन क्या होगा ?
अस्तु !भागकर अहम्-वहम् से राष्टृ हित में जिया करो?
      प्रगति  करो।।१।।

युवावर्ग ,बृध्द जगो जवानों कुछ नही राष्टृ धर्म से बढ़कर।
देश दुर्दशा मत करो प्यारे निज स्वार्थ लालच में पड़कर।
समत्व ,एकत्व से सदा बढ़ आगे छल कपटों जालसे डरकर।
वर्तमान का सदुपयोग ही नाम अमर कर देगा मरकर।
पाप से बचकर सदा शुभ शान्ति सत्य सर्वदा धरो ।
    प्रगति करो।।२।।

आलस ,कायरता ,जातिवाद में पडकर न चकनाचूर हो।
निर्भिक ,निर्भ्रान्त बन साहसी देश -प्रम से भरपूर  हो ।
ईर्ष्या-व्देष,फुटवाद कालिमा कलुष कल्मष क्लेश हरो।
मानवता माधुर्य महक से सुखद -सलोना देश  करो ।
आज विश्व सरताज देश के दुरंत व्यथा का विघ्न हरो।
प्रगति    करो ।।३।।

बहके हुए निज भाईयों को प्यार सत्य से पाटकर  ।
एकसूत्र में बंंध जाओ बैर -विरोध छल छाँट  कर  ।
हरगिज न आगे बढ़ सकेगे हम अपने को बांट कर।
बच नहीं सकते बैठे है जिस डाल पर उसको काटकर।
स्वदेव हेतु "कवि बाबूराम "कुर्बानी से भी नही डरो।
     प्रगति    करो ।।४।।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )८४१५०८
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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