खिलखिला के हंस

बदलाव मंच को नमन
ग़ज़ल प्रस्तुत

        खिलखिला के हंस

ऐसी  गंगा  प्यार  की  बहायी  जाए
पगड़ी न किसी की भी उछाली जाए
नफरत को छोड़ के हम नेह में डूबें
या  रब  कोई  ऐसी  भी  सुनामी  आए

हो  हमारी  इबादत  में  इतना  असर
सवाल मेरा न कोई भी खाली जाए

मेरे  संग  संग  बुत  बोले  नाचे  गाएं
हमारे  इश्क  में  इतनी  जवानी  आए

हर दम हर पल हम रखें सिर्फ ध्यान इतना
न किसी चेहरे पर कभी उदासी छाए

रोता हुआ बच्चा खिलखिला के हंसे
फिर  ऐसी  ही  कहानी  सुनाई  जाए

माणिक किसी की पीर पै न हंसना कभी
आह का वार न कभी भी खाली जाए
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वरचित है।
भास्कर सिंह माणिक ( कवि एवं समीक्षक) कोंच,जनपद-जालौन, उत्तर -प्रदेश-285205

Badlavmanch

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