राम को खेलावत कौशिल्या रानी

🌾राम को खेलावत कौशिल्या रानी 🌾
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चैत शुक्ल नवमी को पावन अयोध्या में ,
मध्य दिवस प्रगटाये रामचनद्र ज्ञानी।
सुन्दर सुकोमल दशरथ नृपति -सुत ,
भव्य सुख शान्ति सत्य सिन्धु छवि  खानी।
जिनके दर्शन हेतु तरसता सर्व देव ,
बाल ब्रह्मचारी संत योगी यती ध्यानी।
शुचि उत्संग बिच ले के "कव बाबूराम "
श्रीहरि राम को खेलावत कौशिल्या रानी।

ललाटे तिलक भाल ग्रीवा तुलसी की माल ,
केश घुंघराले अति प्रिय मधुर  बानी।
पांव पैजनी कटी पीत कर पिनाक सोहे ,
अंग - अंग चारू रूप जन -मन लुभानी।
राम बाल रूप पै लज्जित कोटि कामदेव,
मोहे त्रिभुवन निज  सुधी  सब भुलानी।
राम जन्मभूमि चुमि -चुमि "कवि बाबूराम "
श्रीहरि राम को खेलावत कौशिल्या रानी।

राम सुखधाम भये प्रगट ललाम जहाँ ,
धन्य -धन्य ,धन्य वह अवध राजधानी।
होत ना बखान बलिहारी जाऊँ बार -बार ,
मोक्ष दायिनी है राम जन्म की कहानी।
अतीव बड़भागी सुभागी दशरथ प्रिया ,
राम रुप लखि हिया पल - पल जुडा़नी।
सर्व सुखदाता विधाता को "कवि बाबूराम ,
श्रीहरि राम को खेलावत कौशिल्या रानी।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )
मो0नं0- 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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