कवि सतीश लाखोटिया जी द्वारा रचित 'गीत'

*गीत* 

 ऐ हवा जरा
अपने रुख़ को मोड़
मेरे सनम की ओर
वो रूठी है मुझसे
ले चल मुझे
उसी की ओर 
ऐ हवा.... 

दिल से दिल तक
चलती जब इश्क की हवा
न रूकती, न सुनती
न करती 
किसी की परवाह 
ऐ हवा..... 

 न जाने 
किस बात से
वो खफा हो गई मुझसे
 चाहता हूं, ले जाऊं उसे समझाने
शीतलता से भरी छांव की ओर  
 ऐ हवा.... 

गिले-शिकवे तो चलते रहते
जहां होता अपनों से प्यार
बेरुखी हवा को बदलो
बांधों फिर चाहत की डोर

ऐ हवा 
अपने रुख को मोड़

सतीश लाखोटिया
नागपुर, 
महाराष्ट्र
9423051312
9970776751

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