🌾अथ श्री गोमाता चालीसा 🌾
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दोहा
शिव सुत शारद सदगुरु ,गो गोविन्द सिर नाय ।
गो माँ चालीसा लिखूं ,करियो सभी सहाय।।
====== चौपाई =========
जयति जयति जय जय गो माता।
सेवक जन संतत सुख दाता।।
सबसुख सुयश सकल गुण खानी।
कृपा करहु सुरभी महरानी।
कामधेनु सुरभी गो नामा।
सेवत सकल सिध्द हो कामा।।
स्वास्थय सुखदअनमोल खजाना।
ऋषि मनी सुर सबशास्त्र बखाना।
कवि कोविद सुर नर मुनी नारद।
गाते गुण सब ज्ञान विशारद।।
रिध्दी सिध्दि अरु लक्ष्मी माई।
तेरी कृपा सुलभ सुखदाई।।
रोम रोम सब देव विराजे।
सम्मुख तोहि देख यम भाजे।।
तुम हो सब रुद्रन की माई।
महिमा तीन लोक में छाई।।
सकल देव पूजित गो माता।
भक्तन की हो भाग्य विधाता।।
गो वंशज हैं नंदी नामी।
शिव तक कहलाये गोस्वामी।।
रामचन्द्र अरु सगर दिलीपख।
सेवा कर भये सिध्द समीपा।।
गोपालक श्रीकृष्ण मुरारी।
गाई महिमा सदा तिहारी।।
जमदग्नि ऋषि कीन्ही सेवा।
सहसबाहु नृप पाए मेवा।।
देव दनुज मानव सब कोई।
गो सेवा कर निर्मल होई।।
माता के सम दूध पिलाती।
इसीलिए माता कहलाती।।
क्षीर सुधा सम अति गुणकारी।
स्वास्थ्य लाभ पाते नर नारी।।
जो गोमूत्र करे निज पाना।
रहे निरोग होय कल्याणा।।
कैंसर अरु क्षय रोग महाना।
देख गुमातर करहिं पयाना।।
मूत्र महा औषधि सुखमूला।।
घी दधि दूध गुमातर गोबर।
पंचगव्य करता निर्मल उर।।
ज्योतिष ग्रन्थ करे गुण गाना।
है मुहूर्त्त गोधुली महाना।।
गोबर सींग अस्थियां सारी।
सदा किसखनों को हितकारी।।
गोरोचन विशेष शुभ कारी।
धारे सिर सारे नर नारी।।
रोम रोम है तेरा पावन।
संग तुम्हारा रो ग नसावन।।
जो नित पूजन अर्चन करता।
रौरव नरक कबहु नहीं पड़ता।।
जहाँ रहे माँ चरण तुम्हारे।
करते वास देवता सारे।।
भोजन से जो दो गो ग्रासा।
आपद विपद न आवे पासा।।
गो सेवा कर नही अघाते।
वे पुरुषार्थ चतुष्टय पाते।।
नित गो मंत्र जपे जो प्राणी।
मिले सुलाभ ना होवे हानी।।
अन्त समय करते गोदाना।
उनका होय परम कल्याणा।।
मृत्यु परान्त बने माँ तरनी।
पार करा देती वैतरनी।।
गो सेवा में जो चित लावे।
दुख दारिद्र समीप न आवे।।
जिस घर में गो माता नाही।
तहं यथार्थ सुख सम्पति नाही।।
ऐसी कृपा सुरभि माँ कर दे।
राष्टभक्ति जन जन में भर दे।।
हो गो भक्त सभी नर नारी।
हटे कुसंकट होंहि सुखारी।।
सदा चरण में हो नत शीशा।
पाते रहें सदा आशीषा।।
मै मति दीन हीन खल कामी।
त्राहीमाम् गो मातु नमामी।।
कभी न छूटे माँ तव ध्याना।
सदा सदा गाऊँ गुण गाना।।
बाबूराम सिंह कवि गाता ।
माता कभी न होय कुमाता।।
माँ प्रणाम किंकर का लीजे।
अपनी कृपा कोर कर दीजे।।
======== दोहा ========
गो माँ की महिमा महा ,जो करते नित गान ।
सभी देव अनुकूल हो ,जीवन हो दुतिमान।।
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वन्द गोमातरम् ! वन्दे गोमातरम् !
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🌾गोमाता की आरती 🌾
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ऊँ जय जय गऊमाता ऊँ जयति सुरभि माता।
जो जन सेवा करता नरक नही जाता।।ऊँ जय0।।
वेद पुराण ऋषि मुनि महिमा तव गावै ।
तीन लोक में पूजित प्यार सभी पावै।।ऊँ जय0।।
दूध अमिय सम देती घास पात खाती।
देख सामने यम की छाती थर्राती ।।ऊँ जय0।।
पंच गव्य पंचामृत मृत्यु अकाल हरे।
तेरी जिस पर छाया जग से वह न डरे।।ऊँ जय0।।
भाव भक्ति से पद रज जो जन शीश धरे ।
वह गोधाम सिधावे आवागमन टरे ।।ऊँ जय0।।
कोटि -कोटि जन तारे मेरी क्या गिनती ।
बाबूराम कवि कहते मातु सुनो विनती।।ऊँ जय0।।
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बाबूराम सिंह कवि
ग्राम-बड़का खुटहाँ ,पोस्ट-वीजयीपुर(भरपुरवा)जिला-गोपालगंज ( बिहार )
मो0नं0- 9572105032
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾*************************1पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार।परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।।होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण,यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।*************************2गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल।इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।।जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना,निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना।कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा,करती भव से पार, सदा ही सबको गंगा।*************************3जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार।है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।।सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में,वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में।कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग,निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग।*************************बाबूराम सिंह कविग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा)जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032*************************मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित।हरि स्मरण।*************************
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