शायरी

मशहूर होने में न जाने कितना वक़्त लगता है,
मग़रूर होने के लिए तो महज़ चंद मिनट काफ़ी है।
*मशगूल* होने में न जाने कितना कुछ त्याग करना पड़ता है,
महरूम होने के लिए तो महज़ चंद वक़्त काफ़ी है।।
©® जितेन्द्र विजयश्री पाण्डेय "जीत"

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