'ये आंखें मेरी'- विषय पर कविता -पूजा कुमारी जी द्वारा

बदलाव मंच

"ये आंखें मेरी"

ये आंखे मेरी बस उन्हें ही तलाशती है,
कितना कुछ है पास इसके फिर भी
उन्हें ही पुकारती है
वो जो दूर है मुझसे , बेखबर खुद में
ये आंखे मेरी उनके नाम से ही इतराती है।

जब भी आईना देखूं , कुछ न कुछ सवाल कर जाती है
ये आंखे मेरी शायद उन्हें ही संवारती है।

जबसे बसे हैं वो निगाहों में मेरी , ये दिल कहीं और अब ठहरता ही नही,
ये आंखे मेरी हर चेहरे में बस उन्हें ही तलाशती है ।

यूँ तो कितने ही जुड़ते रहतें हैं ,
यूँ तो कितने ही जुड़ते रहते है..
पर ये आंखें मेरी तुमसा न किसी से जुड़ पाती है।

तुम जो होकर भी न हो मेरे,
तुम जो होकर भी न हो मेरे,
ये आंखें मेरी, तुम्हें अपना बताती है,
तुम्हारे होने के एहसास से ही शर्माती  है..

हां ! ये आंखें मेरी , तुमपर हाँ बस तुमपर ही
ठहर पाती है..
कभी तो पढ़ पाओ तुम, 
काश!! कभी जो पढ़ पाओ तुम,
ये आंखे मेरी बिन बोले ही हर भाव बतलाती है..
मेरे दिल के हर ज़ज़्बात झलकाती है..
ये आंखें मेरी बस तुम्हें ही तलाशती है...।।

©पूजा कुमारी
उपाध्यक्षा
महिला काव्य मंच
पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर (झारखण्ड)

On Sun, 23 Aug, 2020, 8:46 pm Puja Kumari, <pujakri2009@gmail.com> wrote:
बदलाव मंच

*"ये आंखें मेरी"*

ये आंखे मेरी बस उन्हें ही तलाशती है,
कितना कुछ है पास इसके फिर भी
उन्हें ही पुकारती है
वो जो दूर है मुझसे , बेखबर खुद में
ये आंखे मेरी उनके नाम से ही इतराती है।

जब भी आईना देखूं , कुछ न कुछ सवाल कर जाती है
ये आंखे मेरी शायद उन्हें ही संवारती है।

जबसे बसे हैं वो निगाहों में मेरी , ये दिल कहीं और अब ठहरता ही नही,
ये आंखे मेरी हर चेहरे में बस उन्हें ही तलाशती है ।

यूँ तो कितने ही जुड़ते रहतें हैं ,
यूँ तो कितने ही जुड़ते रहते है..
पर ये आंखें मेरी तुमसा न किसी से जुड़ पाती है।

तुम जो होकर भी न हो मेरे,
तुम जो होकर भी न हो मेरे,
ये आंखें मेरी, तुम्हें अपना बताती है,
तुम्हारे होने के एहसास से ही शर्माती  है..

हां ! ये आंखें मेरी , तुमपर हाँ बस तुमपर ही
ठहर पाती है..
कभी तो पढ़ पाओ तुम, 
काश!! कभी जो पढ़ पाओ तुम,
ये आंखे मेरी बिन बोले ही हर भाव बतलाती है..
मेरे दिल के हर ज़ज़्बात झलकाती है..
ये आंखें मेरी बस तुम्हें ही तलाशती है...।।

©पूजा कुमारी
उपाध्यक्षा
पूर्वी सिंहभूम, जमशेदपुर (झारखण्ड)

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