क्यों चुप है....
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क्यों चुप है मेरा तिरंगाअब तक चुप
है मेरा तिरंगा।
आज उसके लहराते रंगों से, किसने लिया परहै पंगा? क्यों चुप है मेरा तिरंगा
संसद के गलियारों से चलकर ,हर ,गली हर कूचे से निकल कर
धरती और पर्वत के शिखर पर
गूंजी ललकार बजा डंका।। क्यों चुप है मेरा तिरंगा अब तक चुप है मेरा
तिरंगा।।
हम शत शत करोड़ हैं इसके नीचे
इसका अंबर इसकी धरती अपनी तरफ प्रेम से खींचे।।
खेतों में खलिहानों, में सज कर हरे परिधानों में
गेहूं की झूमती बालियों में और सोन से दमकते धानों में
कहीं उबड़ खाबड़ राहों में कहीं ऊंचे खड़े पहाड़ों में ,अविरल बहती जाती मेरी
कल कल करती गंगा ।।
अब तक क्यों चुप है मेरा तिरंगा
छाती में अगर हिम्मत है तो जरा
रुख बदल कर देख ले
पाओं में ताकत अब भी हो तो जरा
पलट कर देख ले।
इस कॉम की मांओं ने संतानों को
दूध नहीं अपना खून पिलाया है
माओं से पहले निपट ले दुश्मन
बेटा भी उसी का जाया है।।
बेटों के सीनों में हाथों से ,भर दिया है उसने प्रचंड अंगार
सजा कर भेजा है रण क्षेत्र में तेरा करने तुमुल संहार।।
हथियार छोड़ अब यह प्रण ले ले
अब आगे ना होगा कोई दंगा अब चुप नहीं मेरा तिरंगा अब चुप नहीं मेरा तिरंगा।।
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