एक तुमने मुझे सिर्फ चाहा नही, वरना सारा जमाना मुझे चाहता
मोतियों से जडा ताज लाकर कोई, मुझको दे दे तो मुझको नही चाहिये
आप तो दिल मे कब से बसी हो प्रिये, द्वार दिल का खुला है चली आइये ।
एक तेरी छुअन ने है पागल किया, मन के दर्पण मे मुझको जो दिखने लगी
अश्रु के नीर से प्रेम के पृष्ठ पर, हर मुलाकात अपनी जो लिखने लगी ।
तुमने रब से कभी मुझको मांगा नही ,वरना सारा जमाना मुझे मांगता
एक तुमने मुझे सिर्फ चाहा नही, वरना सारा जमाना मुझे चाहता ।
थाल तुम आरती का जो लेके चली, मन कलश मेरे मन का महकने लगा
किस डगर से चली आ रही तुम यहाँ ,बस इसी खोज मे मन भटकने लगा।
ए हवाए,ए बादल,ए बरसात भी, ए समझती नही है क्या जज्बात भी
तुमने मुझको भुलाकर है तन्हा किया, अब तेरे बिन गुजरती मेरी रात भी।
तुमने पहली दफा बाहों मे भर लिया ,मेरे होठो को तुम चूमती रह गयी
तुम बदन से लिपट कर मेरे रोज उस, भीगी बरसात मे झूमती रह गयी ।
खुद के दिल को अगर मरता मै नही, एक दिन ये जमाना मुझे मारता
एक तुमने मुझे सिर्फ चाहा नही ,वरना सारा जमाना मुझे चाहता ।
अर्पण शुक्ला
मोतियों से जडा ताज लाकर कोई, मुझको दे दे तो मुझको नही चाहिये
आप तो दिल मे कब से बसी हो प्रिये, द्वार दिल का खुला है चली आइये ।
एक तेरी छुअन ने है पागल किया, मन के दर्पण मे मुझको जो दिखने लगी
अश्रु के नीर से प्रेम के पृष्ठ पर, हर मुलाकात अपनी जो लिखने लगी ।
तुमने रब से कभी मुझको मांगा नही ,वरना सारा जमाना मुझे मांगता
एक तुमने मुझे सिर्फ चाहा नही, वरना सारा जमाना मुझे चाहता ।
थाल तुम आरती का जो लेके चली, मन कलश मेरे मन का महकने लगा
किस डगर से चली आ रही तुम यहाँ ,बस इसी खोज मे मन भटकने लगा।
ए हवाए,ए बादल,ए बरसात भी, ए समझती नही है क्या जज्बात भी
तुमने मुझको भुलाकर है तन्हा किया, अब तेरे बिन गुजरती मेरी रात भी।
तुमने पहली दफा बाहों मे भर लिया ,मेरे होठो को तुम चूमती रह गयी
तुम बदन से लिपट कर मेरे रोज उस, भीगी बरसात मे झूमती रह गयी ।
खुद के दिल को अगर मरता मै नही, एक दिन ये जमाना मुझे मारता
एक तुमने मुझे सिर्फ चाहा नही ,वरना सारा जमाना मुझे चाहता ।
अर्पण शुक्ला
बहराइच उत्तर प्रदेश
Sent from my Samsung Galaxy smartphone.
0 टिप्पणियाँ