मैं लौटकर आऊंगा

बदलाव मंच

मैं लौटकर आऊंगा

स्वरचित रचना

16/8/2020


प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

मैं लौटकर आऊँगा।
मैं लौटकर आऊँगा।
बनाकर तख्त कर्मो के 
मैं शान से लिख जाऊँगा।।

मैं अंगारों पर चलने वाला।
नभ तक ऊंचा उठने वाला
नही कभी डरा आज तक
आगे भी नही घबराउंगा।।

काल के समक्ष क्यों डरना।
कल मरना सो आज मरना।।
 इसी धरा पर इसी भूमि पर
 नए वेश में नए परिवेश में
 ऐसे ही लौटकर आऊँगा। 

नए ऊर्जा से ओतप्रोत होकर।
फिरसे भले नव अंकुरित होकर।
चाहे ही फिरसे पौधा बनकर।।
इसी धरातल पर बृक्ष बन जाऊँगा।।


नए नये गीतों में ढलकर,
घिरकर नए आशाओं में।
गढ़ा जाऊँगा नए नए रूप में 
नए नए कथाओं में ।।
सभी का साहस बढ़ाऊँगा।।

सूरज के किरणों के रूप में।
कभी छाँव तो कभी धूप में।।
कभी किसी की प्रेरणा बनकर या
किसी का मुस्कान बन जाऊँगा।।

जानवर रूप में या इंसानों में
या यादों के नए पुराने मकानों में।
हर तरफ चाहे जहाँ भी खोजोंगे
बनकर अभिलाषा नजर जाऊँगा।। 

मैं नही मरने वाला
 चंद रख की ढेरी से।
लौटकर आऊंगा चाहे 
जल्दी या देरी से।।

मैं अविरल अविनाशी कहाँ
 काल से हलाल हो पाऊंगा।
आकर मैं फिरसे माँ भारती के 
चरणों में सीष झुकाऊंगा।
मैं फिरसे लौटकर आऊंगा।।

प्रकाश कुमार
मधुबनी, बिहार

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