बदलाव मंच
11/8/2020
स्वरचित रचना
*अलौकिक आनन्द के धाम है कृष्णा।*
मेरे गिरधर फिर से तेरी बासुरी
की तान सुनने को जी चाहता है।
तेरे मुरली की धुन पर एक कविता
और रचने को जी चाहता है।।
कोई तुझसे जीवन मांगने आता है
कोई जीभर कर धन माँगता है।।
किन्तु इन चीजों से मेरा क्या लेना।
आज तो मेरा दिल तुझसे तुझे
मांगने को जी चाहता हैं।।
कोई गंगा को रजता है
कोई यमुना को रजता है।
मैं तो रजता चलू अंत तक उसी को
जिसको भगीरथ भी रजता है।।
मुरली को अपने हाथों में लेकर
गोपियों संग रास जो रचाते है।
भक्तों के पुकारते ही जो छण में
पैदल ही जो दौड़े आते है।।
कहने वाले कहते है गिरधर
कृष्णा तो कोई छलिया कहता है।
जिस रूप में भी पुकारों उनको
किन्तु अपने भक्त का वचन
सदा हर हाल में निभाते है।।
गायों पर जो सदा प्रेम बरसाते है।
छपन्न भोग को छोड़ जो प्रेम से
एक चावल के दाने में जो खुश हो जाते है।।
नाचता है जिसके इशारे पर काल
जो प्रेम के वश में होकर जो
झूम झूम नाच दिखाते है।
मैं बावला क्या पार पाऊँगा
भला उनको जिनके एक दर्शन से
सन्त महात्मा भी तृप्त हो जाते है।।
प्रकाश कुमार
मधुबनी,बिहार।
0 टिप्पणियाँ