कर्मयोगी कृषक

देखो आज
वसुंधरा  ने नव श्रृंगार किया है ।
देख,यह आज
कृषक हर्षित
विश्वास-आस की डोर थामे
पावस से पल्लवित हृदय कर
कर्ममार्ग पर प्रशस्त है
कर्मयोगी,कर्मठ है वह
रक्त-स्वेद से सींचता फ़सल
स्वाभिमान और संबल का अद्भूत व्यक्तित्व,
हलधर का पहचान
प्रेरक गाथा है अन्नदाता की
दीन दु:खियों का पालनहार
भूख-प्यास से तनिक विचलित ना होता
खेतों में सतत् हल चलाता
खलिहान अन्नों से भरता
सर्वदा वह अपने पीड़ा को
कीटनाशक के जैसे स्वयं  हीं समाप्त करता
दु:खों के बादल से भी
अडिग,अटल,निर्भीक
संलग्न अपने कर्म पथ पर

✍कमलेश कुमार गुप्ता  गोपालगंज बिहार

Badlavmanch

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