बदलाव साहित्य मंच
दिनांक--08-08-2020
दिन- शनिवार
शीर्षक- समय के रूप
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स्वरचित रचना
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सृष्टि से ही काल का पहिया,
सतत अथक चलता जाता।
जैसी दशा जब होती मेरी,
वैसा ही वो आभास कराता।
इन्तजार जब करना हो तो,
इतना धीमा क्यों हो जाता।
एक एक पल लगता ऐसे,
जैसे एक युग बीता जाता।
हुई देर क्या थोड़ी मुझसे,
वह फुर्र सा यों उड़ जाता।
कितना भी दौड़ो फिर पीछे,
कोई उसे पकड़ ना पाता।
दुख जब भी मुझपर आया,
इतना कातिल वो हो जाता।
दर्द सहा जब जब भी मैंने,
बेदर्द सिमटना नहिं चाहता।
सुख की घनी अनुभुतीयों में,
वक्त हमेशा कम पड़ जाता।
घड़ी हमें बस समय बताती,
समय हैसियत हमें बताता।
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नाम-रमेश चंद्र भाट
पता-टाईप-4/61-सी,
अणुआशा कालोनी,
रावतभाटा।
मो.9413356728
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