गुदड़ी का लाल

नमन मंच
विषय-- उपहार
शीर्षक-- गुदड़ी का लाल

"रधिया कितनी बार कहा है तुझे कि अपने काले कलूटे गन्दे से रन्चू को लेकर मेरे घर मत आया कर ।"
"इसके साथ खेलने से मेरा दीपू बीमार हो जायेगा ।"
"पर तू है कि तेरे कान पर जूँ तक नहीं रेंगती ।"
"रोज रोज फिर वही ढाक के तीन पात"
मालकिन चिल्लाते हुए रधिया बाई से उसके दस बर्षीय बेटे को काम पर साथ लाने के लिए डपट रही थी ।

"मालकिन बस दो चार दिन की बात है फिर इसकी दादी गांव से आ जायेगी तो वो अपने साथ खोली मेंं रोक लिया करेगी ।"
"इसे पढ़ने का बहुत शौक है । मैं इसे घर में ही किताब बस्ता लेकर दे दूंगी । फिर यह दादी के पास बैठकर पढ लिख लिया करेगा । "
रधिया ने बर्तन रगड़ते हुए जबाब दिया 
तभी दरवाजा खुला देखकर नन्हा दीपू दरवाजे से बाहर निकल कर सड़क पर दौड गया ।
 सामने से तेज गति से आती गाडी को देखकर बाहर खडे रन्चू ने दौड कर दीपू को खींचा ।
दीपू को अपनी गोद में लिए रन्चू भी दीपू के साथ उल्टी पल्टी खाकर कच्ची सड़क पर जा गिरा । 
इस खींच तान में रन्चू के हाथ पैरों में बहुत सारी घिसट लगी थी जिससे खून बह रहा था ।किंतु दीपू बिल्कुल सही सलामत था ।
शोरगुल सुनकर बाहर दौड़ती बदहवास मालकिन ने अपने बेटे दीपू को सुरक्षित देखकर चैन की साँस ली ।दुर्घटना के गवाह लोग रन्चू के साहस की सराहना करने लगे ।
रन्चू के साहस से प्रसन्न मालिक ने रन्चू को पढ़ाने लिखाने की जिम्मेदारी हर्ष पूर्वक स्वयं उठा ली ।
रधिया से बोले कि "मैं जानता हूँ गुदड़ी में भी लाल छिपे होते हैं । "

✍️ सीमा गर्ग मंजरी
 मेरी स्वरचित रचना
मेरठ

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