नारी है नारायणी

🌾नारी है नारायणी 🌾
*************************
        दोहे   भाग -02
    ==============
त्याग  समर्पण  व श्रध्दा ,ममता प्यार दुलार ।
ग्रहणी मधुर मधुर महकी,घर आंगनअरू व्दार।
गृहलक्ष्मी  शुभ नारि  है ,भाग्यवती सुख सार ।।
जन-जन की जननी यही ,समग्र सृष्टि आधार।।
बहू सुता  माता  बहन ,पत्नि  योग्य सत्कार ।
अमन चैन अग जग भरे ,बाढै़ सुख परिवार।।

नारी  की  महिमा महा ,महक  उठे संसार ।
आनंदित  जग  को करे ,यही धर्म का सार।।
पालन पोषण में सबल ,सच नारी अनमोल ।
नारि बिन भोगे नरक ,संग स्वर्ग बिन तोल।।
सेवा  में  सिरमौर है ,अरू सर्वोत्तम त्याग ।
बिन नारी विस्तार ना ,जाग सके तो जाग।।

क्षमा  दया  कृपामयी ,क्यों  बेबस है  नारि ।
जागरूक  हो  यत्न  से ,इस पर करे  विचार।।
कर  न्योछावर  नारि सब ,करती नर  तैयार।
फिर  क्यो  इउससे छीनते ,जीने का अधिकार।।
जन-जन को सुख बांटती ,ना कर निज परवाह।
बदले  में बस  पा  रही , दुख दर्द और आह।।

भ्रूण  हत्या पुत्री  की , है  दहेज का शाप ।
इससे बढ़कर केअधम ,नहीं जगत में पाप।।
करे सु आदर मान सब ,सत्य धर्म के साथ ।
नारी   है  नारायणी , तभी  बनेगी  बात ।।
पावन परम पुनीत है , नित नारी उपकार ।
कहते "बाबूराम कवि " परम पूज्य है नारि।।

*************************
बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )841508
मो0नं0 - 9572105032
*************************

On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
*************************
                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
*************************   
                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
*************************
                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

*************************
बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
*************************
मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
*************************

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ