❤️संतान❤️
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माँ तो एक ममत्व की गंगा,
उसमें ममता का प्रवाह नियमित होगी।
एक संतान अवांछित भले हो,
माता के लिए शापित नही होगी।
ईश्वर की अनुग्रह के बिना कोई,
भी निर्माण निर्धारित नही होगी।
संतान तो वरदान प्रभु का,
कोमल मन गीली मिट्टी सा होगा।
शापित बने या बने वरदान,
जैसा निर्माण माता-पिता का होगा।
एक संतान अपना सम्मान और दर्पण,
कर अर्पण शिक्षा-संस्कार दिलाना होगा।
संतान के चरित्र-निर्माण का कर्तव्य,
उसका गंतव्य उसे बताना होगा।
एक उपवन के पुष्प संतान रंग-बिरंगी,
गोरी- काली जैसी फूलों की डाली होगी।
पुष्प खिलाये पूजन का या श्रापित किसी दुर्जन सा,
जैसा बागवान जिस बगिया का होगा।
संतान तो वरदान ईश्वर के जैसी अनुकृति,
जीवन की आकृति माता-पिता द्वारा होगी।
अभिशप्त हो या वरदान अपनी संतान,
ये मातृ-पितृ के अभिलाषा से अनुगृहीत होगी।
सारी सृष्टि का विस्तृत विकास निरंतर,
नौनिहालों के चरित्र निर्माण से निर्मित होगी।
परिलक्षित होगा शापित या वरदान अपनी संतान,
जैसी उनकी अच्छी-बुरी परवरिश होगी।
जीवन-निर्माण तो माता-पिता की कृति,
कुछ दोष तो परिस्थिति की भी होगी।
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🌷समाप्त🌷
स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय
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