अंतर्राष्ट्रीय कवयित्री अनुपम रमेश किंगर जी द्वारा 'खादी' विषय पर रचना#बहरीन देश से #बदलाव मंच

खादी

मैं खादी हूँ
देखो मैं तुम्हारी माँ सी हूँ
मैं खादी हूँ
मैं गर्मी में शीतल शीतल
के जैसे ममता का आँचल
सर्दी में गर्म चा सी हूँ
मैं खादी हूँ
हिमालय से गंगा सागर तक
मैं ही हूँ सतरंगी इंद्रधनुष
सागर की लहरों सी छू जाती हूँ
मैं खादी हूँ
गांधी की पुकार में मैं हूँ
लाला जी की ललकार में मैं हूँ
हर शहीद को ओढ़ाई जाती हूँ
मैं खादी हूँ
मेरे प्रेम की सूती डोरी में
बँध गए आज़ादी के मतवाले सभी
स्वावलंबी चरखे पर काती जाती हूँ
मैं खादी हूँ 
इतिहास में थी और आज में हूँ
मैं सदा से  भारतीय समाज में हूँ
तुम्हारी पहचान तुम्हारा परचम तुम्हारी आज़ादी हूँ
मैं खादी हूँ
मैं कलश भी हूँ मैं सजदा भी
मैं ही गुरुद्वारे का हलवा भी
 थी सखी  और साथी हूँ
मैं खादी हूँ।
माँ की ही तरह ना भुला देना मुझको कहीं
कभी लिखना कभी पढ़ना कभी बुनना मुझको भी
इस मिट्टी की आशीष हूँ मैं
इस हवा। सी सीधी सादी हूँ
मैं खादी हूँ
मैं खादी हूँ

 मौलिक एवं स्वरचित कृति अनुपम रमेश किंगर बहरीन

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