कलम उगलती आग #क्रांतिकारी कविता#राजीव रंजन#बिहार

                 *कलम ऊगलती आग*

आज मेरी नादान कलम ने फीर ऊगली है आग,
बेटी की अस्मत लूटी माँ का लुटा सुहाग ।

दरिंदों ने दरिंदगी की हद कर दी,
देखो सरकार ने भी उसी की मदद कर दी,
मर गई है मानवता मर गया शरम और लाज ।
आज मेरी नादान कलम ने फिर ऊगली है आग ।

गिर गया है उसके आँखों का पानी,
जो अपनी बेटी में देखता है महबूब की जवानी,
झाँकना होगा अपने अन्दर कैसा हुआ समाज ।
आज मेरी नादान कलम ने फिर ऊगली है आग ।

गूँज रही है चीखें उसकी जम्मू की घाटी में,
माँ भारती तड़प रही है आज अपनी ही माटी में,
कब तक सोते रहोगे अब तो जाओ जाग ।
आज मेरी नादान कलम ने फिर ऊगली है आग ।

मौन जुलूस और कैंडिल मार्च से कुछ नहीं हासिल होगा, फीर कोई निर्भया से घायल दिल्ली का दिल होगा,
कभी निर्भया,कभी फातिमा कभी जुबैदा होगी,
त्वरित न्याय गर नहीं मीला तो फूलन पैदा होगी ।–2

©️ राजीव रंजन गया (बिहार)

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