कवि डॉ. राजेश कुमार जैन जी द्वारा रचित गीत

सादर समीक्षार्थ 
 नव गीत 


जब भी कभी सोचता हूँ 
 दर्द भुलाने कुछ अपने 
स्वार्थ भरी इस दुनिया में
 सब छलावा सा लगता है
 शब्दों के इस मोह जाल में
मन घबराने सा लगता है..।।


 साजिशों के इस बाजार में
 हर चेहरे पर नकाब लगा है
 मुस्कुराहटों के पीछे छिपी
 जाने कितनी कपटी चालें हैं
 मन व्यथित होने लगता है
 दुनियां के इन बाजारों में..।।


 नहीं दिखता स्नेह प्यार अब
 रिश्तों में रहीनहीं मिठासअब 
मित्रों की बातों से भी अब तो
 अपनापन अब नहींझलकता 
कहाँ छोड़ते हैं दर्द साथ अब
 लिपटे रहते सदा तन मन पर..।।




 डॉ. राजेश कुमार जैन
 श्रीनगर गढ़वाल 
उत्तराखंड

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