पहाड़ों में कैद एक रूह

पहाड़ों में कैद एक रूह

अप्रतिम ,अद्भुत रूप निराला,
      अनोखी छटा बहारों में!
        पर्वत के मस्तक से इठलाती सी,
           गंगा उतर-उतर गिरती बीच पहाड़ो में!
कंचनजंघा की चोटी से विहंगम,
        अनुपम दृश्य नजारों में!
              हृदय-पटल पर कर अंकित छवि ,
                तन तो है संग में, ''रूह हुई कैद पहाड़ो में!"
श्वेत हिम-आच्छादित पर्वत ,
      लेटे हो ओढ़ चादर चाँदी के तारों के।
            दूर क्षितिज में मधुर मिलन हो ,
                जैसे,धरा-गगन आलिंगन में !
घन ब्योम से प्रेम सुधा बरसायें 
     बरसें  पुष्प अम्बर के तल से!
        हिम के मस्तक से बहता निर्झर ,
            भाँति-भाँति के सुमन खिले कतारों में!
चाँद चमकता नभ के भाल पर,
      अनोखी सी चमक सितारों में!
         अति मनोहर परिदृश्य यहाँ पर,
             पर्वत से पावनी बहती गंगा ,
जैसे छेड़े कोई सरगम मधुर,
         वीणा के सुरीले -सुन्दर तारों से!
            दिनकर घूँघट से झाक रहा हो जैसे,
              सिंदूरी-आभा बिखरे बीच बृक्ष चिनारों से!
रसीले पुष्पज खड़े यहाँ लदे-फदे से,
        अलंकार से अलंकृत हो जैसे !
            मौसम का रूप भी बड़ा मनोहारी,
               शोख सी अदा बहारों में।
   सिन्दूरी आभा से पुरित वसुंधरा,
        लज्जित ललाम की लाली से
            अंकित दृश्य मानस-पटल पर,
               कैद हुई रूह उन सुन्दर से पहाड़ों में!

💐समाप्त💐 
स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका-शशिलता पाण्डेय

Badlavmanch

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