आओ बढें आगे सतत् उत्थान

आओ बढें आगे सतत् उत्थान.....
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हिन्दु। हिन्दी आर्यावर्त महान के लिए ।
आओबढें आगे सतत उत्थान के लिए। 

स्वदेश की रक्षा में जन-जन रहे तत्पर। 
सद्भाव विश्व  बन्धुत्व काहो  भाव परस्पर  
काम क्रोध मोह लोभ मिट दम्भ व मत्सर। 
रहे सब कोई एकत्व समता में अग्रसर। 
उद्धतरहे पल-पल हरि गुणगान के लिए।। आओ ०।।

बाल विवाह बन्द युवा विधवा विवाह हो। 
दहेज  दुष्परिणाम का विध्वंस आह हो। 
मिल बांधकर खाने की जनजन-मे चाह हो ।  
सर्वत्र मानव धर्म  मानवता की  राह  हो। 
जागरुक रहे  नेकी  धर्म दान के लिए।। आओ०।।

गैबध शराब नशा अविलम्ब बन्द हो।
महगांई बेरोजगारी का रफ्तार मन्द हो। 
देशर्दोही दुराचारी नहीं  स्वछन्द हो। 
परोपकार  प्यार का घर-घर प्रकाश हो। 
अबला अनाथ दीन-दुखियों के मुस्कन के लिए। आओ० ।।

चोरी घूसखोरी भ्रष्ट नेता का नाश हो। 
सुख-शान्ति  सफलता का चहुंदिशी विकास हो। 
साक्षरता सहशिक्षा का घर-घर प्रकाश हो। 
परोपकार हरि भक्ति की तीव्र प्यास हो । 
कवि बाबूराम सत्य शुभ अभियान  के लिए। आओ०।।
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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर 
गोपालगंज ( बिहार )
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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