🎂मॉडर्न बंजारे🎂
घूम-घूम कर दुनिया में,
करते अपने वारे-न्यारे।
ऐसे निट्ठल्ले लोग जो,
दुनियाँ को देते धोखा,
इनका नही कोई ठौर-ठिकाना
फ़िरते ये मारे-मारे।
अपना निभाते नहीं कर्तब्य,
भरमाते सारे जग को,
मूर्ख बनाते दुनियाँ को,
अपना फर्ज भूल वो सारे।
बिना मेहनत माल उड़ाते,
मुफ्त की भक्ति- सेवा पाते।
अंध-विश्वास का खोल,
पहनते ये मॉडर्न बंजारे।
संत बने बैठे सिंघासन पर,
,सैर करें वायुयान से ।
हर-दिन शहर पे शहर बदलतें,
लगते है भक्ति के नारे।
रंग-बिरंगे रूप बना कर,
भक्ति नाम पर नृत्य बावरा,
झूठी इज्जत झूठी शोहरत,
धर्म-नाम धन खूब बटोरे।
कर भविष्य-वाणी उल्टी-सीधी,
बनें है धरती के भगवान।
धर्म का धंधा सबसे उम्दा,
करते अपनें मॉडर्न बंजारे।
जंगल साधना और तपस्या,
मुनि-ऋषि हम भूलें सारे।
अपनीं तो प्रवचन के भी धन,
लाखो लेते संतरूपी मॉडर्न बंजारे।
इनकी खोल की पोल खुले ना,
बदल-बदल कर दूजा शहर पधारे ।
मदिरा ,नारी- नृत्य बीमारी,
यही तो होते मॉडर्न बंजारे।
🎂समाप्त🎂 स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखिका:-शशिलता पाण्डेय
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