कवि बंसीधर शिवहरे जी द्वारा 'कान्हा' जी सुंदर काव्य सृजन

हमको ना ऐसे , सताया करो तुम।
हमें छोड़ करके ,न जाया करो तुम।।

कान्हा तुम्हारी ,हूं मैं तो दीवानी ।
कभी न ये मुरली ,बजाया करो तुम।।

तुम्हें ढूंढती है, ये मेरी निगाहें ।
यमुना किनारे ,आ जाया करो तुम।।

मुझे अब तो सखियां, भी मारे  हैं ताना।
मुझे अब न राहों में ,छेड़ा करो तुम।।

गैया चलाने को ,जाते हो बन में।
कभी मेरे घर भी,आ जाया करो तुम।।

           बंशीधर शिवहरे

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