बदलाव मंच राष्ट्रीय सचिव रजनी शर्मा "चंदा" जी द्वारा "प्लाज्मा दान" विषय पर लघुकथा

प्लाज्मा दान (लघुकथा)

विशाल जिंदगी और मौत की  कोरोना से जंग जीत कर घर लौटा तो घर वालों और मोहल्ले वालों ने शंखनाद ,घंटियां और ताली बजाकर, फूलों व मिठाईयों से उसका स्वागत किया। आइसोलेशन की जिंदगी जीने के बाद आम जिंदगी में वह सहज नहीं हो पा रहा था। अंतरात्मा में भय पूरी तरह से व्याप्त हो चुका था। बार-बार अस्पताल से फोन और मैसेज आने के बावजूद वह प्लाज्मा डोनेट करने को तैयार नहीं था ।उसकी पत्नी अवनी उसे समझा समझा कर थक गई परंतु वह अस्पताल जाने को तैयार नहीं हुआ। एक दिन सुबह दरवाजे पर कुछ बच्चे भूख से बिलबिलाए हुए खाना मांग रहे थे। विशाल बरामदे में न्यूज़ पेपर पढ़ रहा था उसने अवनी से कहा फ्रिज में जो कुछ है जल्दी से इन बच्चों को खाने को दे दो। अवनी को एक युक्ति सूझी उसने कहा फ्रिज में जो कुछ भी है उसे हम लोग खाएंगे । इन बच्चों को मैं क्यों दूं... मैं इन बच्चों को ना खाना दूंगी.... ना ही पैसे दूंगी... ये भूख से मरते हैं तो इन्हें मरने दो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। विशाल हैरान हो गया अवनी क्यों खाना देने से मना कर रही है । उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था‌ ।विशाल ने उसे समझाया कि देखो बच्चे भूख से तड़प रहे हैं और हमारे पास बहुत खाना है अगर हम बच्चों को थोड़ा सा खाना दे देते हैं तो इसमें हमारा क्या बिगड़ जाएगा । उनकी क्षुधा की तृप्ति हो जाएगी‌। और इन मासूम बच्चों को जीवनदान मिल जाएगा ।तब अवनी मुस्कुराते हुए बोली यही चीज तो हम सभी तुम्हें समझाना चाह रहे हैं। कि जिस त्रासदी से तुम गुजर चुके हो वैसी स्थिति में अभी भी बहुत से लोग कष्ट में बिलबिला रहे हैं। ऐसी स्थिति में प्लाज्मा डोनेट कर केवल तुम ही उनकी मदद कर सकते हो। विशाल को बात समझ में आ गई उसने कहा मैं आज ही प्लाज्मा डोनेट करने के लिए जा रहा हूं। तुमने मेरी आंखें खोल दी।बच्चों के लिए झटपट उसने खाना निकाला उन्हें खिलाने के बाद कुछ राशन तथा रुपए सबसे बड़े बच्चे को देकर फिर कुछ जरूरत होने पर आने को कह कर उन्हें विदा कर दिया। विशाल तैयार होकर अस्पताल की ओर चल पड़ा एक अनोखा दान करने। जिससे कईयों को जीवनदान मिल सके। उसके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कुराहट चस्पा थी।

डॉ रजनी शर्मा चंदा
रांची, झारखंड

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