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*कविता का अमर गायक*
कविता का अमर गायक आज मौन पड़ा।
पूछ रहा सिंहासन हमसे आज कौन बड़ा।।
यह करगिल की ओर पोखरण की हुंकारें बोले।
संसद की गरिमा अब सब भारत माता जी बोले।।
इस दिनकर की परंपरा का वह चारण कहाँ गया।
स्वाभिमान का जीवन प्रदृष्क पथिक कहाँ गया।।
राष्ट्रधर्म सत्यता में अड़िग विजय के महानायक थे।
राजनीति में भीष्म भूषण की शैली के गायक थे।।
दिल्ली के आंगन में शब्द कोष भी मौन पड़ा।
पूछ रहा सिंहासन हमसे है आज कौन बड़ा।।
वह अजातशत्रु वैभव नेतृत्व निपुण चला गया।
मेरे भारत का नवरत्नों में से एक रत्न चला गया।।
जिसने खींची थी महा नवयुग की स्वर्णिम रेखा।
भारत की माटी को पोखरण में उभरते देखा।।
कवि हृदय से भारत के जय जय गीत गाता रहा।
राजनीति की घोर आंधी में धर्म दीप जलाता रहा।।
बड़े लोकतंत्र की गौरवमय गरिमा को दोहराया।
सदा सत्य लिए शब्दों में कड़वा जहर पिलाया।।
देश भक्ति का परिचायक मातृभूमि में द्रोण पड़ा।
पूछ रहा सिंहासन हमसे है आज कौन बड़ा।।
पथ में जो सदा बाधक बने वे उनको सहलाते थे।
बड़े - बड़े दिग्गज वाणी सुनने को रुक जाते थे।।
जब भी बोले मंचों से राष्ट्र उद्घोष का राग रहा।
दृढ़ संकल्पित मन में युग्मित कश्मीर भाग रहा।।
अवधपुरी का गौरव दशरथ का ऊँचा मान रहे।
ऊंची पताका श्रीराम की ऊंचा धर्म का धाम रहे।।
सिंहनाद करते अटल राजनीति के समरांगण में।
प्रतिज्ञा उनकी सत्य हुई मंदिर बन चला प्रांगण में।।
सारा भारत अखण्ड हो चिरस्वप्न में दृष्टि कोण रहा।
पूछ रहा अब सिंहासन हमसे आज कौन बड़ा।।
कृष्णा सेंदल तेजस्वी
राजगढ़ धार मप्र
(८४३५४४०२२३)
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