हे मानव ईश्वर से डर

हे मानव ईश्वर से डर
सदा तू अच्छे कर्म कर
मानवता को भूल गया क्यूं
दानवता के पथ पर चल कर
  
  दया धर्म सब भूल गया तूं
पाप की राह पर चल कर
 
झूठी अकड़ झूठी शान
काहे को तू बने महान
जाएगी इक दिन जब जान
धरी की धरी रह जाएगी झूठी तेरी शान
फिर किस पर तू करें गुमान

 प्रभु तुझे दे रहा चेतावनी
फिर भी करता रहता मनमानी
 सुनामी भूकंप सब प्रभु का क्रोध
फिर भी तुम्हें नहीं है वोध
कब आएगी तुझे समझ

लूट खसूट जो तूने मचाई
पैसे के पीछे बना शौदाई
शर्म हया सब बेच के खाई
मानवता की खिल्ली उड़ाई
कैसे होगा तेरा कल्याण
इस का तुम्हें नहीं है भान

         अशोक शर्मा वशिष्ठ

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