योग अनुपम अलौकिक है


!! योग अनुपम अलौकिक है !!

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सुखी मन स्वस्थ तन का मन्त्र ,
योगी  , योग कहता है ।
कुशलता से कर्म कैसे ? करें ,
जब रोग लड़ता है ।
करोगे योग मय -सत्कर्म ,
दिग्दर्शन सफलता का ,
बढ़े प्रतिरोध क्षमता तंत्रिका की ,
योग कहता है ।।
परिस्थिति हो कहीं कैसी ?
योग मुस्कान लाता है ।
थकानें मन की या तन की ,
हमें दृढ़ता सिखाता है ।
दु:खों को दूर करता है ,
दु:खी चाहे भी कितने ? हों ,
सत्य का ज्ञान हो कैसे ?
हमें सक्षम बनाता है ।।
महर्षि पतंजलि का सूत्र ,
समस्या निदायक है ।
खुशी मिलती ,मिले आनंद ,
अनुभव विनायक है ।
सर्वदृष्टा पृकृति का ,
सहज ही भान होता है ,
योग अत्यंत आवश्यक ,
जीवन सहायक है ।।
योग आसन नहीं केवल ,
वैज्ञानिक प्रयोगिक है ।
भार महसूस ना होता ,
योग ही कर्म -योगिक है ।
सन्तुलन और संयम हो ,
विचारों पर नियंत्रण भी ,
"योगो भवति दु:खहा ",
योग अनुपम अलौकिक है ।।

डॉ अनुज कुमार चौहान"अनुज"
अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)



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