विषय-- शब्द
शीर्षक --शब्द करें अठखेलियाँ ~
अक्षर ~अक्षर साथ सजे,
सजे रूप से शब्द बने ,
शब्दों के संगम से ,
रचायें इक कल्पना ,
कविता कहानी,
में पिरोते,
मन की भावना ,
शब्द करें अठखेलियाँ ,
खेलें आँख मिचौलियाँ ।
सच, शब्दों का जादू ,
दिल में भर जाता है ,
संवेग स्पंदन जब जागे ,
मधुर रसीली चाशनी में लिपटे ,
शब्दों से दिल तंरगित लहराता है ।
सुनने वाले के दिल पर ,
वशीकरण मंत्र अमल कर जाता है।
हों विषबेल से शब्द तो,
मन में मैल भर जाते,
नजरों से गिरते इंसान ,
कटुता का होता भान,
दर्दीली धुन शब्दों में सुन ,
आँसू पिघलते,दर्द बहाते,
गम हल्का कर जाते,
हँसी के हंसगुल्ले से मीठे शब्द ,
हँसाते, गुदगुदाते,वेदना भुलाते ,
ये शब्द ही खेलते हैं अठखेलियाँ,
श्रोता, वक्ता, पाठक से
बूझते पहेलियाँ ,
हॉ, शब्द करें अठखेलियाँ।
कल्पनाओं की उन्मुक्त उडान ,
गुलमोहर के सुर्ख रंगों से ,
लावण्यमयी मनमोहक सृजन,
मादकता के अनछुये पल,
मिलन के स्पर्श में डूबते ,
कविता के रूप में ढलते,
पाठकों के दिल पर मधुरिम ,
अद्भुत छाप छोडते ,
इसलिए ...
शब्दों को जब भी बोलो,
तो सँभल कर मुख खोलो ,
भले ही शब्द मुख से
निकले हों,या भावनाओं से,
स्वर्णिम उड़ान की तूलिका
से सजाई हों रंगीन तितलियाँ ,
या ,
यामिनी आगमन से
कोरे पन्नों पर ,
उकेरी हों कौमुदी मोक्तिक शोभा ,
की रंगीनियाँ ,
शब्दों की अठखेलियाँ ,
कवि के नवनीत ह्रदय भाव से,
निकलती प्रेरित करती हैं ,
पाठकों का अन्तर्मन ,
स्पर्श से झंकृत,आनन्दित होता,
पाठक, लेखक, शब्दों से जुड़ते हैं ,
भाव तंरगों की लहरों में ,
डूबकी गहन लगाते हैं ,
शब्द अठखेलियाँ कर जाते हैं
हाँ!!
हमें ले अपने संग ,
भाव सागर में मिल रंग,
डुबो जाते हैं ,
सच, शब्द अठखेलियाँ ,
कर जाते हैं ||
✍ सीमा गर्ग " मंजरी "
मेरी स्वरचित मौलिक रचना
मेरठ
सर्वाधिकार सुरक्षित @
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