अन्तः ज्योति जलाकर जियो

अन्तः ज्योति जलाकर जियो
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हर पल में  मुस्काकर जियो ।
अन्तःज्योति जगाकर जियो।।
कर्मों की गति है अति न्यारी ,
सत्कर्म  अपना  कर   जियो  ।
नेकी  नही  तो  नर्क मिलेगा  ,
नेक  कमाई   खाकर  जियो ।
सुख दुख जीवनमें है हरपल,
गीत खुशी  के  गाकर जियो  ।
प्रेम   सत्यता   भाई    चारा ,
सेवा  भाव  जगाकर   जियो  ।
परोपकार परहित  में  पावन ,
निज  सर्वस्व  लुटाकर जियो।
धेनु  अतिथि  विप्र  सेवा   में ,
आगे  कदम  बढा़कर  जियो ।
जन-जनका है जलही जीवन ,
पानी  निज  बंचाकर   जियो।
नर योनि अति  श्रेष्ट अनुपम ,
हरि  से  लौ  लगाकर  जियो।
जिने  की  यह कला अनुपम ,
"बाबूराम कवि"पाकर जियो।

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बाबूराम सिंह कवि 
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपालगंज ( बिहार )
मो०नं०- ९५७२१०५०३२
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On Sun, Jun 14, 2020, 2:30 PM Baburam Bhagat <baburambhagat1604@gmail.com> wrote:
🌾कुण्डलियाँ 🌾
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                     1
पौधारोपण कीजिए, सब मिल हो तैयार। 
परदूषित पर्यावरण, होगा तभी सुधार।। 
होगा तभी सुधार, सुखी जन जीवन होगा ,
सुखमय हो संसार, प्यार संजीवन होगा ।
कहँ "बाबू कविराय "सरस उगे तरु कोपण, 
यथाशीघ्र जुट जायँ, करो सब पौधारोपण।
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                      2
गंगा, यमुना, सरस्वती, साफ रखें हर हाल। 
इनकी महिमा की कहीं, जग में नहीं मिसाल।। 
जग में नहीं मिसाल, ख्याल जन -जन ही रखना, 
निर्मल रखो सदैव, सु -फल सेवा का चखना। 
कहँ "बाबू कविराय "बिना सेवा नर नंगा, 
करती भव से पार, सदा ही सबको  गंगा। 
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                       3
जग जीवन का है सदा, सत्य स्वच्छता सार। 
है अनुपम धन -अन्न का, सेवा दान अधार।। 
सेवा दान अधार, अजब गुणकारी जग में, 
वाणी बुध्दि विचार, शुध्द कर जीवन मग में। 
कहँ "बाबू कविराय "सुपथ पर हो मानव लग, 
निर्मल हो जलवायु, लगेगा अपना ही जग। 

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बाबूराम सिंह कवि 
ग्राम -बड़का खुटहाँ, पोस्ट -विजयीपुर (भरपुरवा) 
जिला -गोपालगंज (बिहार) पिन -841508 मो0नं0-9572105032
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मै बाबूराम सिंह कवि यह प्रमाणित करता हूँ कि यह रचना मौलिक व स्वरचित है। प्रतियोगिता में सम्मीलार्थ प्रेषित। 
          हरि स्मरण। 
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