वक्त का फैसला




🏵️वक्त का फैसला🏵️

हर एक अन्याय का होता,
     एक दिन वक्त का सख्त फैसला।
           ना वकील ना ही कोई गवाही,
                 प्रकृति का निर्णय अकेला।
मौन निष्कर्ष दंड निर्दयी,
     जिसने उसका दंड झेला।
          वक्त का दंड बड़ा दुष्कर,
               होता हमेशा उचित फैसला
जितना दर्द दोगे जमाने को,
     बस दो दिनों का सब खेला।
         पापों का हर हिसाब होता, 
             बस!कुछ वक्त का फासला।
ना दो किसी को दर्द इतना,
     देना पड़े हर पापों का सिला।
          तुम्हारे बेरहम कृत्यों का जबाब,
                बेरहमी से देगा ऊपरवाला।
अपने स्वार्थ की नदी में डूबकर,
       जाने कितनों को तुमने छला।
            स्वार्थ के लिए की बेईमानी ,
                 छीना औरों के मुँह से निवाला।
अपने लिए अपनो से की बेईमानी,
        न कर पाया तू अपना भी भला।
             निज स्वार्थ में होकर अँधे दौलत के,
                      संतान में सुविचार नही डाला।
झूठ,फरेब, की कमाई दौलत,के 
      वास्ते खुद को पाप में धकेला।
          माया की नगरी में पाप और पुण्य,
             जो लेना है चुनकर लेकर जाना अकेला।
हर अन्याय का होता अंत मे,
     वक्त का सख्त मौन एक फैसला।
       ।हे मानव!अब तू भी कर खुद निर्णय,
             तू जान भी नही पायेगा वक्त की लीला।
अंत मे क्या लेकर जाएगा दुनियाँ से?
    जिन्दगी भर तूने किया इतना झमेला।
     इस क्षणभंगुर जीवन की डोर टूटेगी,
         निर्जीव तन दुसरो के कंधे असहाय झूला।
        
           

🌹समाप्त🌹 स्वरचित और मौलिक
                     सर्वाधिकार सुरक्षित           कवयित्री:-शशिलता पाण्डेय

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