धर्मनिरपेक्षता

धर्मनिरपेक्षता
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धर्म निज भाव जीवन है,
मानवता सुपरिचित हो ।
लिखा संविधान में हर शब्द,
कानूनन अपरमित हो ।।
विविधता देश की शक्ति,
मन-मश्तिशक में अंकित हो।
धर्मनिरपेक्ष भारत की छवि ,
दुनियाँ में वर्णित हो ।।

धर्म के नाम पर पीड़ा न दे ,
वह शक्तिशाली है ।
संविधान उच्चतम शक्ति,
धर्म जीवन प्रणाली है ।।
आश्तिक-नाश्तिक कोई भी,
हो उन्नति का अधिकारी ।
समन्वय सर्व धर्मों का ,
प्रभाव -ए न्यायशाली है ।।

मिली परिवेश से शिक्षा ,
स्वयं से ही प्रवाहित हो ।
आचरण के वहाने शिष्टता ,
जग भी प्रभावित हो ।।
प्रजा का तन्त्र हो चाहे ,
व्यवस्था तन्त्र हो कोई ।
सफलता -सूत्र अनुशाशन ,
अनुसरण प्रोत्साहित हो ।।

डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़ ( उत्तर प्रदेश )

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