जितेन्द्र विजयश्री शायरानें अंदाज में

बदलाव नियम है ज़िंदगी का,
बदलाव दस्तूर है ज़िंदगी का।
बदलाव न हो तो ऊब जाता है आदमी,
बदलाव फ़ितूर है ज़िंदगी का।।
©®जितेन्द्र विजयश्री पाण्डेय "जीत"

©®रचना मौलिक और अप्रकाशित। सर्वाधिकार सुरक्षित।

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