वादों की बरसात से दरिया है भरपूर।।लेकिन हम प्यासे खड़े,साहिल पर मजबूर।।

कुछ दोहे,,
 होंठों पर ताले लगे पैरों में ज़ंजीर।।
उसपर भी हम ढो रहे,पर्वत जैसी
पीर।।

वादों की बरसात से दरिया है
भरपूर।।
लेकिन हम प्यासे खड़े,साहिल पर
मजबूर।।

पतवारें टूटी हुईं ,सागर में तूफान।।
मांझी तेरे हाल पर, रहम करें
भगवान।।

शीशे का लेकर बदन, चढ़ ना
हमें पहाड़।।
उसपर आंधी तेज है,और
खोखले झाड़।।

बृंदावन राय सरल सागर एमपी

Badlavmanch

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