'बदलाव मंच' राष्ट्रीय सचिव रजनी शर्मा चंदा जी द्वारा सुंदर रचना

यशोधरा के भाव

सखी मन कैसे समझाऊं...

धर्म संकट में फंसी यशोधरा 
मन की किससे वो भाव कहे
 प्राण प्रिय जब गए भवन से
 किंचित थे मेरे नयन मुंदें

 प्रेम अथाह न सीमा कोई
 विश्वास ये कैसे अटल रहे
 वियोग से व्यथित मन रे सखी
 हृदय की पीड़ा यह कैसे सहे

 जब यह रण को जाते तो 
तिलक भाल चमकाती सखे   
 रख खुद कृपाण कोमल कर में
 देती तलवार पर शान धरे

 चिर सुख का अमृत पाने चले
 यह कैसे भूले मेरे प्रिय
 मैं राह में कांटा बनती ना 
मन सहभागिता की खुशियों में झूले 

कुछ कह ना गए यह मलाल
 जीवन भर मेरे संग चले 
छोटा बालक गोदी में जो
 बिन पिता प्रेम के कैसे पले

 जोगन बन कर सर्वदा रही
 चिर हलाहल को पान किए
 पतिव्रता स्वाभिमानी माता बन 
कर्तव्यों का सदा भान रहे

 सिद्धि पाकर जब बुद्ध हुए
 भिक्षुक बन आऐ पात्र लिए 
सब है जिसका क्या दूं मैं उसे
 चिर वियोग सुख मेरे हिस्से का
 भिक्षा पात्र में मांग लिए 

पलकों में प्रतिपल आंसू मेरे
 भवसागर कैसे पार करें 
ले संन्यासिन का जीवन प्रियतम
अनुरागिनी से अनुगामी हो चलें।

डॉ रजनी शर्मा चंदा
रांची झारखंड

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