कोरोनाचार (एक दबी हुई बीमारी)
घर में मंगरी बीमार थी,
दिन -रात खेत में मजूरी कर के..
ठीक करने में लगा था अपनी बहुरिया को..
नहीं जाता था कहीं भी वो,
खेत-बाड़ी और जंगल के सिवा..
पर अचानक कोरोना-पॉजिटिव लोगों की
आती है लिस्ट गाँव में..
ले जाते हैं 'व्यवस्थापक' मंगरा को गाड़ी में..
और रख देते हैं क्वारंटाइन-केंद्र में..
यहाँ मंगरी तड़प रही है घर में,
उधर याद और चिंता में तड़प रहा है मंगरा..
'स्कूल-घर' में
सुनने में आया है
कि हॉस्पिटलवालों और व्यवस्थापक को..
मिलता है बहुते पइसा,
हर एक कोरोना पेसेंट के पीछे..
समझ नहीं आता बिना खोखी वाला मंगरा को
कि किसको कोरोना हुआ है..
व्यवस्था को, डॉक्टर की बुद्धि को,
या कि सत्ता के रखवाला सबको ?
ई कइसा कोरोना-चार है ?
ई कइसा ब्यापार है ?
का इहे भ्रष्टाचार है ?
कॉपीराइट @दीपक क्रांति
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