*चीं चीं करते चिड़िया आई*,
*मन की बात को बता गई ।*
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चीं चीं करते चिड़िया आई ,
यह आसरा ढूँढते।
जीवन आधार है अब कहाँ,
मानव पेड़ काटते।
मेरा घौरोंदा उजाड़ कर ,
लाया पेड़ काट के।
घर की शौकत शान बढ़ाया,
सुन्दर तना छाँट के।
ये न सोचा नन्हीं चिड़िया ,
जायेगी अभी कहाँ।
तिनका तिनका उठा उठा कर,
घर बनाती थी यहाँ।
पावन धरती का मान बढ़ा,
जब वह गाना गाती।
मधुर मधुर आवाज से हमको,
सुबह सुबह जगाती।,
भौतिकता की ये बलि चढ़ी,
कानन वन समानता।
छत पर चिड़िया बैठ सोचती,
मानव की अज्ञानता।
*सुशीला साहू "विद्या"*
*रायगढ़ - छत्तीसगढ़*
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