'बदलाव मंच' अंतरराष्ट्रीय सचिव डॉ. सत्यम भास्कर भ्रमरपुरिया जी द्वारा 'बेटी से ज़िन्दगी संवर जाती है' विषय पर सुंदर रचना





*बेटी से जिंदगी संवर जाती है*

पिता नहीं था,
तो पता नहीं था,
जिंदगी ऐसे मुस्कुराती है,
बेटी से जिंदगी संवर जाती है,
अप्रत्याशित खुशी, जिंदगी जैसे सोना,
और इसमें सुगंध आ जाती है।

कभी नानी बन जाती है,
कभी दादी बन जाती है,
कभी अम्मा बन जाती है,
कभी टीचर बन जाती है।

नित नए *अवतार* में खुद को समाती है,
कभी मुझे लोरी सुनाती है,
कभी खुद सो जाती है,
कभी मुझे हिरो डैडु बुलाती है,
कभी मुझे चिढ़ाती है।

हर पल मुझे जीना सिखाती है,
मेरी *माहिका* जीवन को महकाती है,
मेरी जिंदगी में हर पल नया रंग भर जाती है।

*डॉ सत्यम भास्कर "भ्रमरपुरिया"*
*अंतरराष्ट्रीय सचिव बदलाव मंच*

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