कवयित्री शशिलता पाण्डेय जी द्वारा 'एक दुल्हन की मौत' विषय पर मार्मिक रचना

💐एक दुल्हन की मौत💐

जकड़ कर रस्मों-रिवाज,
      की मजबूत बेड़ी से।
सारे अरमानों की,
        जलाकर होली।
उठे बाबुल- भवन,
       से बेटी की डोली।
तभी होती दिल से,
       दुल्हन की मौत।
तन पर सजे हुए,
    अलंकार बड़े अनमोल।
मन का उसके करें,
    ना कोई भी मोल।
दुहाई इज्जत की,
     रस्मों-रिवाज जिंदा ।
दुल्हन का तन,
जीवित मन है मुर्दा।
अभिलाषा विहीन,
     जैसे हो कोई परिन्दा,
हौसलों के काट पँख,
      नही होते शर्मिंदा।
रूढ़ियों को थाम कर,
       परम्परा के नाम पर।
मिटाते अस्तित्व पराई ,
      उसे दुल्हन बताकर।
मौत होती उसी पल,
      जब मन अपने मारकर।
बाबुल के घर से विदा,
       होती दुल्हन के नामपर।
उलझ रिश्तों के जाल,
      में निबाहती जिंदगीभर।
दुल्हन बन आती पत्नी बहु,
         माँ भाभी सास बन जाती ।
रिश्तें निभाती हुई किसी दुसरें के,
       नाम की चिता पर सज जाती।
मिटाकर अपना वजूद,
      दुल्हन सोचती रहती हमेशा।
कहलाती पराये घर की बेटी,
        पराया- धन का घर कौन सा?
क्या हैं मेरा वजूद मैं हूँ कौन ?
    सोचती रहती दुल्हन हमेशा मौन।
    

🎂समाप्त🎂 स्वरचित और मौलिक
                     सर्वाधिकार सुरक्षित
               लेखिका :- शशिलता पाण्डेय

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