शहरी मंजर से दूर,गाँव की खाली खाट,

शहरी मंजर से दूर,
गाँव की खाली खाट,
और निःशब्द लेटा मैं,
महसूस करता हुँ बरबस ही,
अलग - अलग परिवेश और,
बिल्कुल ही अलग परिदृश्य को ।
पास के खेतों से आती ,
कर्मशील किसानों की बोलियां ,
खींच लेती है ध्यान अनायास ही ,
निमग्न हो कीचड़ में भी,
सोना उगाने की जद्दोजेहद में तत्पर,
शहरियों की खुराक रोपता किसान,
यूँ तो अब यहाँ भी खेतों में,
नहीं दिखाई देते कहीं हल-बैल,
पर पगडंडियाँ अब भी वैसी ही हैं,
वैसे ही हैं लोगों के खट्टे-मीठे बोल ॥
☺🙏 जय कृष्ण कुमार ( Founder Open Mic Bihar )

Badlavmanch

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